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Tuesday, September 13, 2011

देखेगा कौन...

बगिया में नाचेगा मोर
देखेगा कौन?
तुम बिन ओ मेरे चितचोर
देखेगा कौन?

नदिया का यह नीला जल,
रेतीला घाट.
झाऊ की झुरमुट के बीच
यह सूनी बाट.

रह-रह कर उठती हिलकोर
देखेगा कौन?
आंखडियों से झरते लोर
देखेगा कौन?

बौने ढाकों का यह वन,
लपटों के फूल.
पगडण्डी के उठते पांव
रोकते बबूल.

बौराए आमों की ओर
देखेगा कौन?
पाथर-सा ले हिया कठोर
देखेगा कौन?

नाचती हुई फुलसुंघनी,
वनतीतर शोख.
घांसों में सोनचिरैया,
डाल पर महोख.

मैना की ये पतली ठोर
देखेगा कौन?
कलंगीवाले ये कठफोर
देखेगा कौन?

आसमान की ऐंठन-सी,
धुंए की लकीर.
ओर-छोर नापती हुई,
जलती शहतीर!

छू-छू कर साँझ और भोर
देखेगा कौन?
दुखती यह देह पोर-पोर
देखेगा कौन?
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शम्भुनाथ सिंह
(धर्मयुग २०-०९-१९८१)

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